3.7.17

‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ के साथ ‘मैकाले’ से भी हो दो-दो हाथ

कांग्रेस-मुक्त भारत के साथ मैकाले से भी हो दो-दो हाथ


मनोज ज्वाला
               
कांग्रेसी कुशासन के विरूद्ध वर्ष २०११ से ही देश भर में शुरू हुए कांग्रेस-विरोधी आन्दोलन के साथ सम्पन्न संसदीय चुनाव के दौरान कांग्रेस-मुक्त भारत का जो नारा गूंज उठा,उसका शोर केन्द्र में सत्ता-परिवर्तन होने और देश के विभिन्न राज्यों में हुए विधान-सभा-चुनावों के दौरान कांग्रेस का अप्रत्याशित क्षरण होने के बावजूद आज भी सियासी फिजां में तैर ही रहाहै  इस नारा से निर्मित जन-मत का प्रभाव कहिए या भाजपा के चमत्कारी नेता नरेन्द्र मोदी  अमित शाह के नेतृत्व का परिणामचुनावी प्रहार से कांग्रेस जिस कदर देश भर में घटती-सिमटती जा रही हैउसे देखते हुए बहुत जल्दी ही भारत के कांग्रेस से मुक्त हो जाने की सम्भावना प्रबल प्रतीत होती है  किन्तु , इस सम्भावना के साथ एक शंसय भी है और वह यह कि देशकांग्रेस के चंगुल से शायद वैसे ही मुक्त हो , जैसे अंग्रेजों से मुक्त हुआ ; अंग्रेजियत से नहीं  ऐसा इस कारण क्योंकि अंग्रेजों से मुक्ति का आन्दोलन सन ४७ के सत्ता-हस्तान्तरण से थम गया तोकांग्रेस-मुक्त की अवधारणा भी उससे थोडा ही भिन्न सत्ता-परिवर्तन के इर्द-गिर्द ही घुमती दीख रही है 
किन्तु जिस तरह से गांधी जी का स्वराज अंग्रेजियत से मुक्त हुए बिना प्राप्त होना सम्भव नहीं था उसी तरह कांग्रेसियत से छुटकारा पाये बिना देश का कांग्रेस-मुक्त होना भी कतईसम्भव नहीं है  मेरी यह मान्यता निराधार नहीं है  दरअसल कांग्रेस जो है सो भाजपा की तरह भारत के जन-मन से उपजी हुई देशज राजनीतिक पार्टी नहीं है बल्कि अंग्रेजी औपनिवेशिकसत्ता द्वारा भारत को गुलाम बनाये रखने और गुलामी के विरूद्ध १८५७ सदृश भारतीय स्वाभिमान को कतई नहीं भडकने देने के साधन के तौर पर स्थापित विदेशज’ सरंजाम का सियासीध्वंशावशेष है  ध्यातव्य है कि कांग्रेस की स्थापना ए०ओ०ह्यूम ने इसी उद्देश्य से की थी  यह ए०ओ०ह्यूम भारत का हितैषी नहीं थाबल्कि सन १८५७ के स्वतंत्रता सग्राम को अपने क्रूर-कुटिलकारनामों से कुचल डालने वाला ब्रिटिश नौकरशाह था जिसके द्वारा निर्धारित कांग्रेसियत के अनुसार ब्रिटिश क्राउन के प्रति असंदिग्द्ध निष्ठा एवं अंग्रेजी बोलने-लिखने-पढने की सिद्धता कांग्रेस का सदस्य बनने की अनिवार्य शर्त थी । ऐसे अंग्रेजीदां लोगों के बौद्धिक वाग-विलास की रंगशाला और अंग्रेजी शासन-विरोधीराष्ट्रीयता के खतरों से बचाव के बावत सेफ्टी वाल्ब के तौर पर स्थापित कांग्रेस का प्रमुख ध्येय थाब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य की जयकारी करना और उस औपनिवेशिक गुलामी केविरूद्ध जनाकांक्षा-जनाक्रोश को विस्फोटक रूप लेने से पहले ही तिरोहित कर देना  इस सेफ्टी वाल्ब के निर्माण से पूर्व इसके घटक तत्वों अर्थात अंग्रेजीदां लोगों का एक समुदाय रचने औरभारत-विरोधी सुविधाभोगी पश्चिमोन्मुखी मानसिक आकर्षण पैदा करने की भाव-भूमि गढने के निमित्त एक सोची-समझी रणनीति के तहत मैकाले-अंग्रेजी शिक्षा-पद्धति कायम की गई थी 
तब इसके प्रणेता थामस विलिंगटन मैकाले ने कहा थाहमें भारत में ऐसा शिक्षित वर्ग तैयार करना चाहिएजो हमारे और उन करोडोंभारतवासियों के बीच , जिन पर हम शासन करते हैंउन्हें समझाने-बुझाने का काम कर सके ; जो केवल खून और रंग की दृष्टि से भारतीय होंकिन्तु रुचि , भाषा  भावों की दृष्टि से अंग्रेज हों  मैकाले के इस षड्यंत्रकारी उपाय की सराहना करते हुए ब्रिटिश इतिहासकारडा० डफ ने अपनी पुस्तक  लौर्ड्स कमिटिज-सेकण्ड रिपोर्ट आन इण्डियन टेरिट्रिज१८५३ के पृष्ठ४०९ पर लिखा है   मैं यह विचार प्रकट करने कासाहस करता हूं कि भारत में अंग्रेजी भाषा  साहित्य को फैलाने तथा उसे उन्नत करने का कानून भारत के भीतर अंग्रेजी राज के अब तक केइतिहास में कुशल राजनीति की सबसे जबर्दस्त चाल मानी जायेगी   आगे इस अंग्रेजी-शिक्षापद्धति की वकालत करते हुए मैकाले के बहनोई-चार्ल्स ट्रेवेलियन ने एक बार ब्रिटिश पार्लियामेण्ट की एक समिति के समक्ष भारत की भिन्न-भिन्न शिक्षा-पद्धतियों के भिन्न-भिन्न राजनीतिकपरिणाम शीर्षक से एक लेख प्रस्तुत किया थाजिसका एक अंश उल्लेखनीय है अंग्रेजी भाषा-साहित्य का प्रभाव अंग्रेजी राज के लिएहितकर हुए बिना नहीं रह सकता ……हमारे पास उपाय केवल यही है कि हम भारतवासियों को युरोपियन ढंग के विकास में लगा दें..इससे हमारे लिए भारत पर अपना साम्राज्य कायम रखना बहुत आसान और असंदिग्द्ध हो जाएगा  उस युरोपियन ढंग के विकास कापहला सोपान थी कांग्रेस 
         जाहिर है , बीज के अनुरूप ही वृक्ष होता है  कांग्रेस में राष्ट्रवादियों की कभी नहीं और कुछ भी नहीं चली  महात्मा गांधी के महात्म का इस्तेमाल भर किया गया , जिसके सहारे कांग्रेसका सर्वेसर्वा बन बैठे नेहरू और माउण्ट बैटन के बीच हुई दुरभिसंधि के तहत १४-१५ अगस्त की रात के अंधेरे में ब्रिटिश कामनवेल्थ के अन्तर्गत डोमिनियन स्टेट के सत्ता-हस्तान्तरण कीरस्म-अदायगी के साथ सत्तासीन हुई कांग्रेस भारत को अंग्रेजों का इण्डिया नामक उपनिवेश बनाए रखने वाली उसी षड्यंत्रकारी शिक्षा-पद्धति को जे०एन०यु०-स्तर तक विकसित करतीरही और देशवासियों को युरोपियन ढंग के विकास का सब्जबाग दिखाती रही 
           
जी हां , कांग्रेस की जड इसी मैकाले अंग्रेजी शिक्षा-पद्धति के भीतर है , जिसने हमारी पीढियों को राष्ट्र  संस्कृति की जडों से काट दियाव्यक्तियोंको भ्रष्ट नकलची  पश्चिमोन्मुख बना दिया और राष्ट्रीय चरित्र-चिन्तन  मूल्यों को तार-तार कर दिया  भारतीय संस्कृति  भारतीय राष्ट्रीयता की जडों मेंमट्ठा डालते रहने वाली कांग्रेस और उसके सिपहसालारों का ऐसा अभारतीय  अराष्ट्रीय चरित्र गढने वाली यह अंग्रेजी शिक्षा-पद्धति ही है , जिसकी सीख-समझतमीज  तहजीब आय दिनों जे०एन०यु०  Jawahar Nehru University से ले कर जामिया-मिलिया तक भारत की बर्बादी और गोमांस-भक्षण पशुवत जीवन की आजादी के लिए बौद्धिक वकालत के तौर पर मुखर होते रहती है  भारत कोई राष्ट्र नहीं है तथा बहुसंख्यक भारतवासी आर्य विदेशी हैंऔर भारत का इतिहास ईसा  मोहम्मद के बाद से ही शुरू होता है , प्राचीन भारतीय ग्रन्थ-शास्ररीति-रिवाजमान्यतायें-परम्परायेंभाषा-साहित्य सब बकवास हैं और युरोप-अमेरिका की हर चीज ही हर मायने में श्रेष्ठ है ऐसा अज्ञानतापूर्ण ज्ञान देने वाली यह मैकाले शिक्षा-पद्धति ही हैजिसकी विशुद्ध घूंटीपिये हुए लोग स्वयं को हिन्दू कहने , भारत-भूमि को भारत माता मानने  वन्दे मातरम बोलने से कतराते हैं तथा राम-जन्मभूमि पर अस्पताल बनाने कीवकालत करते हैं और विश्वविद्यालयों में बीफ-फेस्टिबल’ मनाते हैं  अभी हाल ही में हिन्दुस्तान टाइम्स के एक सर्वेक्षण में बताया गया कि हमारे देश केसाठ प्रतिशत से अधिक शहरी शिक्षित नवजवान भारत छोड विदेशों में बस जाना चाहते हैंक्योंकि यहां उन्हें बेहतर कैरियर’ की सम्भावनायें नहीं दीखरही हैं  जाहिर हैऐसे लोगों पर इस मैकाले पद्धति की शिक्षा का नशा कुछ ज्यादा ही छाया हुआ है , जो पूरी तरह से अंग्रेज बन जाने और देश केविलायतीकरण को ही विकास मानते हैं  मैकाले पद्धति की शिक्षा से पगलाये-बौराये हमारे देश के जन-मानस में विकास के सर्वोत्कृष्ट भारतीय जीवन-दर्शन धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की  समझ है , न कोई स्थान  इन्हें सुख-भोग-धन-साधन  मुफ्तखोरी चाहिए , जिसके लिए केजरीवाल जैसे धूर्त पाखण्डीको भी सत्ता सौंप देने वाले ये लोग अच्छे कार्यों के बावजूद वाजपेयी जी की निकासी और सोनिया-कांग्रेस की पुनर्वापसी को आगे भी दुहरा दें तो कोईआश्चर्य नहीं  इस शिक्षा-पद्धति ने  केवल हमारी सभ्यता-संस्कृति  रीति-नीति का ही , बल्कि अधिसंख्य देशवासियों के बोल-चाल , रहन-सहन , खान-पान , खेल-कूद , सोच-विचार , कार्य-व्यापार तक का जो अंग्रेजीकरण  उपनिवेशीकरण कर रखा हैसो वास्तव में कांग्रेसियत ही है , जिसका विस्तारइतना व्यापक और सूक्ष्म है कि इससे भाजपा जैसी देशज राजनीतिक पार्टी भी पूरी तरह मुक्त नहीं है 
           भाजपा के अनेक नेताओं की कथनी-करनी  चाल-चलन जहां कांग्रेसियत से भी ज्यादा औपनिवेशिक हैवहीं कांग्रेस के अनेक बडे-बडे नेता अबधडल्ले से भाजपा में शामिल हो पद  सम्मान पा रहे हैं । विष-वृक्ष को काट-पीट कर उसका सफाया कर देना पर्याप्त नहीं होताजब तक उसे खाद-पानीदेते रहने वाली उसकी जड-मूल को नष्ट  कर दिया
जाय  ऐसे में जरूरत है कि कांग्रेस-मुक्त भारत अभियान के साथ-साथ मैकाले से भी दो-दो हाथ कर उसकी षडयंत्रकारी अभारतीय शिक्षा-पद्धति को उखाड कर भारतीय जीवन-दर्शन की शिक्षा-पद्धति स्थापित की जाए , तभी सही अर्थों में स्थायी तौर पर कांग्रेस-मुक्त भारत का निर्माण हो सकेगा ,अन्यथा सिर्फ सत्ता-परिवर्तन होने से देश का उतना भला होगा कि
परम-वैभव का अभीष्ट सिद्ध हो जाए 
 मनोज ज्वाला
लेखक परिचय
मनोज ज्वाला
लेखनवर्ष १९८७ से पत्रकारिता  साहित्य में सक्रियविभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से सम्बद्ध  समाचार-विश्लेषण , हास्य-व्यंग्य , कविता-कहानी , एकांकी-नाटक , उपन्यास-धारावाहिक , समीक्षा-समालोचना , सम्पादन-निर्देशन आदि विविध विधाओं में सक्रिय  * सम्बन्ध-सरोकारअखिल भारतीय साहित्य परिषद और भारत-तिब्बत सहयोग मंच की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य 

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