28.10.10

मीडिया की हिंदी और हिंदी की मीडिया का भाषा बैर

मीडिया की हिंदी और हिंदी की मीडिया का भाषा बैर

16.10.10

हिन्दी में शोधकार्य के लिए डॉ. भानु प्रताप सिंह का सम्मान

हिन्दी में शोधकार्य के लिए डॉ. भानु प्रताप सिंह का सम्मान

हिन्दी भाषा-प्रदूषण के विरुद्ध प्रहार कीजिये !

क्या हिंदी बदल रही है?
Vijay K. Malhotra
पिछले डेढ़ दशक में हिंदी का स्वरूप काफ़ी बदल गया है या फिर इसे जान बूझ कर बदलने की कोशिश हो रही है. कई हिंदी अख़बारों ने तो हिंदी की जगह हिंग्लिश का प्रयोग धड़ल्ले से शुरू कर दिया है.
इसके पक्ष में तर्क ये दिया जाता है कि आज की युवा पीढ़ी जैसी भाषा बोलती है वैसी ही भाषा हम सबको प्रयोग करनी चाहिए. यानी प्रधानमंत्री की जगह प्राइम मिनिस्टर, छात्र की जगह स्टूडेंट्स और दुर्घटना की जगह एक्सीडेंट!
लेकिन क्या ऐसे प्रयोगों से हिंदी का अस्तित्व बच पाएगा? क्या हिंदी भाषाका ये बदलता चेहरा आपको स्वीकार्य है?
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विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा),, रेल मंत्रालय,भारत सरकार

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इंदौर में हिन्दी दिवस

आजकल संसद सदस्यों, मध्य प्रदेश के विधायकों और देश भर के हिन्दी समाचार पत्रों के संचालकों तथा संपादकों को डाक से एक बड़ा-सा लिफाफा मिल रहा है।
वे जब इसे खोलते हैं तो उन्हें एक पुड़िया में राख मिलती है। यह राख किस चीज की है इस उत्सुकता को मिटाने के लिए लिफाफा भेजने वालों ने वक्तव्य भी भेजा है। जिसमें कहा गया है- आज हिंदी दिवस के अवसर पर हम इंदौर नगर के बुद्धिजीवी गांधी प्रतिमा के समक्ष देश भर के लगभग सभी हिंदी अखबारों की एक-एक प्रति जुटा कर उनकी होली जलाने के लिए एकत्र हुए हैं। हम सब जानते हैं कि जब निवेदन के रूप में किए जाते रहे संवादात्मक प्रतिरोध असफल हो जाते हैं, तब विकल्प के रूप में एकमात्र यही रास्ता बचता है, जो हमें गांधीजी से विरासत में मिला है।

यह वक्तव्य का बहुत छोटा-सा हिस्सा है। इसे इंदौर में हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) पर जारी किया गया था। इसमें विस्तार से बताया गया है कि अंग्रेजी शब्दों को जबरदस्ती ठूंस-ठूंस कर हिन्दी को एक ऐसी मिश्रित भाषा बनाया जा रहा है जिसमें हिन्दी के शब्द केवल 30 प्रतिशत हों और अंग्रेजी शब्दों का अनुपात 70 प्रतिशत हो जाए। यह भाषा कैसी होगी, इसका एक नमूना इंदौर के ही एक स्थानीय समाचार पत्र से लिया गया है- 'इंग्लिश के लर्निंग बाय फन प्रोग्राम को स्टेट गवर्नमेण्ट स्कूल लेवल पर इंट्रोड्यूस करे, इसके लिए चीफ मिनिस्टर ने डिस्ट्रिक्ट एज्युकेशन ऑफिसर्स की एक अर्जेंट मीटिंग ली, जिसकी डिटेल्ड रिपोर्ट प्रिंसिपल सेक्रेटरी जारी करेंगे।

यह कोई हंसाने के लिए बनाया गया कोई काल्पनिक वाक्य नहीं है, वास्तव में उस अखबार में ऐसा ही छपा था। और यह कोई एक अकेली घटना नहीं है। हिन्दी के बहुत-से समाचार पत्र ऐसी ही भाषा के प्रयोग की ओर बढ़ रहे हैं। मामला अखबारों तक ही सीमित नहीं है। अंग्रेजी के बढ़ते हुए प्रकोप के परिणामस्वरूप और शब्द-निर्माण में हिन्दी वालों के आलस्य के कारण हिन्दी का जो रूप बन रहा है, उसकी कुछ बानगी भी इस वक्तव्य में पेश की गई है- मसलन, छात्र-छात्राओं की जगह स्टूडेंट्स, माता-पिता की जगह पेरेंट्स, अध्यापकों की जगह टीचर्स, विश्वविद्यालय की जगह यूनिवर्सिटी, परीक्षा की जगह एक्जाम, अवसर की जगह अपार्चुनिटी, प्रवेश की जगह इंट्रेंस, संस्थान की जगह इंस्टीट्यूशन तथा भारत की जगह इंडिया। इसके साथ ही, पूरे के पूरे वाक्यांश भी हिंदी के बजाय अंग्रेजी के छपना, जैसे आउट ऑफ रीच, बियांड अप्रोच, मॉरली लोडेड, कमिंग जनरेशन, डिसीजन मेकिंग, रिजल्ट-ओरियंटेड प्रोग्राम आदि।