Vijay K. Malhotra
पिछले डेढ़ दशक में हिंदी का स्वरूप काफ़ी बदल गया है या फिर इसे जान बूझ कर बदलने की कोशिश हो रही है. कई हिंदी अख़बारों ने तो हिंदी की जगह हिंग्लिश का प्रयोग धड़ल्ले से शुरू कर दिया है.
इसके पक्ष में तर्क ये दिया जाता है कि आज की युवा पीढ़ी जैसी भाषा बोलती है वैसी ही भाषा हम सबको प्रयोग करनी चाहिए. यानी प्रधानमंत्री की जगह प्राइम मिनिस्टर, छात्र की जगह स्टूडेंट्स और दुर्घटना की जगह एक्सीडेंट!
लेकिन क्या ऐसे प्रयोगों से हिंदी का अस्तित्व बच पाएगा? क्या हिंदी भाषाका ये बदलता चेहरा आपको स्वीकार्य है?
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विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा),, रेल मंत्रालय,भारत सरकार
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