3.7.17

अंग्रेजी की पढ़ाईः बच्चों की तबाही



डॉवेदप्रताप वैदिक
अंग्रेजी की अनिवार्य पढ़ाई हमारे बच्चों को कैसे तबाह कर रही हैउसके दो उदाहरण अभी-अभी हमारे सामने आए हैं। पहला तो हमने अभी एक फिल्म देखीहिंदी मीडियम और दूसरा इंडियन एक्सप्रेसमें आज दिव्या गोयल का एक लेख पढ़ाजिसका शीर्षक थाइंगलिश विंगलिशहिंदी मीडियम नामक इस फिल्म में एक ऐसा बुनियादी विषय उठाया गया हैजिस पर हमारे फिल्मवालों का ध्यान हीनहीं जाता। इस फिल्म में चांदनी चौकदिल्ली का एक सेठ अपनी बेटी को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में भर्ती करवाने के लिए तरह-तरह की तिकड़में करके हार जाता है। तब वह गरीबों वाले आरक्षण मेंसेंधमारी करना चाहता है। उस स्कूल में अपनी बेटी को भर्ती करवाने के लिए अपना पता एक ऐसे मोहल्ले का लिखवाता हैजहां मजदूरघरेलू नौकरड्राइवर वगैरह रहते हैं। चेक करनेवाले उसे पकड़ लेंइसलिए वह उसी गंदी बस्ती के घर में कुछ दिन अपनी पत्नी और बेटी के साथ रहता है। उसकी बेटी को उस दिल्ली ग्रामर स्कूल में प्रवेश मिल जाता है लेकिन उसके पड़ौस में रहनेवाले एक बेहद गरीबआदमी के बच्चे को सिर्फ इसलिए प्रवेश नहीं मिल पाता है कि उसका हक इस मालदार आदमी ने मार लिया है। यह मालदार आदमी खुद हिंदीप्रेमी है लेकिन अपनी पत्नी के दबाव में आकर उसने जो कुछकियाउसे करने के बाद एक दिन अचानक उसे बोध होता है और वह कहता हैहम हरामी हैं। हमने गरीब का हक मार लिया। इस बीच वह उस सरकारी स्कूल की जमकर मदद करता है जिसमें उसकेउस गरीब पड़ौसी का वही बच्चा पढ़ता है। एक दिन इस हिंदी मीडियमवाले सरकारी स्कूल और उस अंग्रेजी मीडियवाले स्कूल में प्रतिस्पर्धा होती है। सरकारी स्कूल के बच्चे अंग्रेजी मीडियमवाले स्कूल सेकहीं बेहतर निकल जाते हैं। इस तरह यह फिल्म अंग्रेजी मीडियम का खोखलापन उजागर करती है। इस फिल्म में कई मार्मिक प्रसंग हैंउत्तम अभिनय है और इसका संदेश स्पष्ट है।
इंडियन एक्सप्रेस के इस खोजी लेख में यह बताया गया है कि पंजाब के सरकारी स्कूलों में सबसे ज्यादा बच्चे अंग्रेजी में फेल होते हैं। हर विषय में 60-65 प्रतिशत नंबर लानेवाले बच्चे अंग्रेजी में 15-20 नंबर भी नहीं ला पाते। अंग्रेजी का रट्टा लगाने में अन्य विषयों की पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पाती। अंग्रेजी ट्यूशन पर गरीब मजदूरोंनौकरोंड्राइवरोंरेहड़ीवालों को 500-500 रुमहिना अतिरिक्त खर्चकरना पड़ता है। कई प्रतिभाशाली छात्रों ने कहा कि अंग्रेजी में उनके इतने कम नंबर आए कि उन्हें आत्महत्या करने की इच्छा होती है अंग्रेजी की एक कुशल अध्यापिका इतनी हताश हुई कि शर्म के मारेवह मर जाना चाहती है। उसने बताया कि बच्चे future का उच्चारण फुटेरे, should का शाउल्ड, game का गामे और enough का एनाउघ करतेहैं हम क्या करेंकितना रट्टा लगवाएंमाता-पिता और शिक्षकों को पता है कि अनिवार्य अंग्रेजी की पढ़ाई ने कितनी तबाही मचा रखी है। लेकिन वे क्या करेंहमारे मूर्ख नेताओं ने नौकरियोंऊंचीअदालतों और कानून-निर्माण में अंग्रेजी को अनिवार्य बना रखा है।
लेखक परिचय
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
डॉवेदप्रताप वैदिक
नेटजाल.कॉम‘ के संपादकीय निदेशकलगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन तथा भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष।

No comments: