10.8.10

क्या हिंदी बदल रही है?



बीबीसी हिब्दी द्वारा कल आयोजित परिचर्चा "क्या हिंदी बदल रही है?" के विषय में जारी सूचना के उपरांत प्रभु जोशी जी से बात हुई और आज उनसे सूचना मिली कि बीबीसी पर उक्त परिचर्चा के लिए प्रश्नोत्तर की रेकार्डिंग हुई है| उक्त परिचर्चा में विशेषज्ञ के रूप में प्रभु जोशी जी को व अन्य कुछ सजग भागीदारों को सुनने के लिए नीचे दिए लिंक पर जाएँ.



परिचर्चा इतनी रोचक व महत्वपूर्ण है कि आप इसे बार बार सुनना चाहेंगे| जोशी जी हमारे समूह हिन्दी-भारत के सम्मानित सदस्य भी हैं व उनके लेखन से हम निरंतर सम्पर्क में रहते हैं| २००७ में जब यह समूह प्रारम्भ किया था तो आरंभिक दिनों में इसी विषय पर केन्द्रित उनके एक लम्बे लेख "इसलिए बिदा करना चाहते हैं हिन्दी को हिन्दी के अखबार" को शृंखला के रूप में समूह के सदस्यों व ब्लॉग पर पाठकों से हमने साझा किया था|



मीडिया प्लेयर चलाने के लिए उक्त लिंक को क्लिक करें -

http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2010/07/100723_indiabol_language.shtml

Vijay K. Malhotra

क्या हिंदी बदल रही है?
पिछले डेढ़ दशक में हिंदी का स्वरूप काफ़ी बदल गया है या फिर इसे जान बूझ कर बदलने की कोशिश हो रही है. कई हिंदी अख़बारों ने तो हिंदी की जगह हिंग्लिश का इस्तेमाल धड़ल्ले से शुरू कर दिया है.
इसके पक्ष में तर्क ये दिया जाता है कि आज की युवा पीढ़ी जैसी भाषा बोलती है वैसी ही भाषा हम सबको इस्तेमाल करनी चाहिए. यानी प्रधानमंत्री की जगह प्राइम मिनिस्टर, छात्र की जगह स्टूडेंट्स और दुर्घटना की जगह एक्सीडेंट!
लेकिन क्या ऐसे प्रयोगों से हिंदी का अस्तित्व बच पाएगा? क्या हिंदी भाषा का ये बदलता चेहरा आपको स्वीकार्य है?
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विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय,भारत सरकार

Vijay K Malhotra, Former Director (Hindi), Ministry of Railways, Govt. of India
URL



बीबीसी इंडिया बोल में आयोजित परिचर्चा पर लिखते समय तक कुल ७१ टिप्पणियाँ आईं , देखने के लिए निम्न लिंक पर जाएँ

"क्या हिंदी बदल रही है?"

http://newsforums.bbc.co.uk/ws/hi/thread.jspa?forumID=12241

जहाँ हिंदी भाषी नागरिकों को मारा-काटा या सताया जाएगा और सताने वाले कानून पर भी भारी पड़ते जाएंगे, जहाँ हिन्दी भाषियों को हीन समझा जाएगा या जहाँ हिन्दी लोगों की उन्नति,मान-सम्मान या रोजगार के अच्छे अवसरों की प्राप्ति में बाधक होगी, जहाँ अधिकांश लोग अपने बच्चों को तो अंग्रजी माध्यम में शिक्षा दिलाएंगे और अन्य लोगों को उपदेश हिन्दी का देंगे तो वहाँ भला हिन्दी क्यों नहीं बदलेगी?

सिद्धार्थ कौसलायन आर्य ग्रेटर नौएडा-भारत

यह हमारे लिए अफ़सोस की बात है कि मिलावटी सामान पर तो हाय-तौबा मचाते हैं, पर भाषा में मिलावट करने में हमें गर्व महसूस करते हैं. अगर अंग्रेजी ही बोलनी है तो शुद्ध अंग्रेजी बोलें. यूँ हिंदी में अंग्रेजी मिलाकर बोलेंगे तो गलत असर डालेगी.

Bablu Kolkata

हिंदी का स्वरूप बदलने के किए जा रहे प्रयास कदापि स्वीकार नहीं किए जा सकते. कुछ लोग अपने दिमाग का कचरा हिंदी भाषा पर थोपना चाहते हैं. क्या विश्व में अन्यत्र ऐसी कोई भाषा है जिसे इस प्रकार विकृत किया गया हो? हिंदी के अल्पज्ञान को छुपाने के लिये ये लोग भाषा का स्वरूप ही विकृत करने पर तुले हैं. सभी हिंदी प्रेमी एकजुट होकर इसका विरोध करें.

विनोद शर्मा जयपुर

इसकी कोई आवयश्कता नहीं कि आज के समाचार-पत्र हिंग्लिश भाषा का प्रयोग करें. हिंदी समाचार-पत्र पढ़ने वाले हिंदी अच्छी तरह जानते और समझते हैं. हिंग्लिश के बारे में उनका दिया गया तर्क बेतुका लगता है. हिंदी समाचार-पत्रों का यह दायित्व है कि हिंदी के शब्दों को ही प्रोत्साहन दे, तभी हिंदी बच पाएगी.हिंदी भाषा का यह बदलता स्वरुप हमें कतई स्वीकार्य नहीं.

कृष्णा तर्वे, मुंबई

हमारी भावना, संवेदना, गुस्सा, स्वप्न, सब मातृभाषा में ही प्रकट होते हैं. अंग्रेजी सीखना चाहिए, लेकिन हिंदी के पतन के साथ नहीं. मां कैसी भी हो, बदली नहीं जाती.

नारन गोजिया राजकोट, गुजरात

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From: RAJEEV THEPRA
Subject: Hindi ke prati aap kyaa bananaa chaahenge....namak-halaal....ya haraamkhor.....???

दोस्तों , बहुत ही गुस्से (क्रोध) के साथ इस विषय पर मैं अपनी भावनाएं आप सबके साथ बांटना चाहता हूँ ,वो यह कि हिंदी के साथ आज जो किया जा रहा है ,जाने और अनजाने हम सब ,जो इसके सिपहसलार बने हुए हैं,इसके साथ जो किये जा रहे हैं....वह अत्यंत दुखद है...मैं सीधे-सीधे आज आप सबसे यह पूछता हूँ कि मैं आपकी माँ...आपके बाप....आपके भाई-बहन या किसी भी दोस्त- रिश्तेदार या ऐसा कोई भी जिसे आप पहचानते हैं....उसका चेहरा अगर बदल दूं तो क्या आप उसे पहचान लेंगे....??? एक दिन के लिए भी यदि आपके किसी भी पहचान वाले चेहरे को बदल दें तो वो तो कम , अपितु आप उससे अभिक " "
परेशान "हो जायेंगे.....!!
थोड़ी-बहुत बदलाहट की और बात होती है....समूचा ढांचा ही " रद्दोबदल " कर देना कहीं से भी तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता.....सिर्फ एक बार कल्पना करें ना आप....कि जब आप किसी भी वस्तु को एकदम से बिलकुल ही नए फ्रेम में नयी तरह से अकस्मात देखते हैं,तो पहले-पहल आपके मन में उसके प्रति क्या प्रतिक्रिया होती है...!!.

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