हमारे देश की लगभग २० प्रतिशत जनसंख्या ही अंग्रेजी समझ सकती है। शेष जनसंख्या हिन्दी ही जानने वाली है। आप सभी से प्रार्थना है कि देश की बहुसंख्यक जनता के लिए तथा राष्ट्रभाषा के सम्मान के लिए हिन्दी भाषा एवं देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें। हमारे देश की प्रान्तीय भाषाएं भी अत्यन्त प्रिय, मधुर व संस्कृत मिश्रित हैं। देश के सभी लोगों को प्रान्तीय भाषाओं का भी आदर करना चाहिए तथा कुछ वाक्य प्रत्येक प्रन्तीय भाषा के अवश्य सीख लेना चाहिए जिससे उस प्रान्त में जाने के बाद या उस प्रान्त के किसी व्यक्ति से मिलने पर दो-चार वाक्य बोल सकें।
आज विश्व भाषा के रूप में अंग्रेजी का प्रचलन बढ़ रहा है। अंग्रेजी पढ़ना, उसका ग्याता होना बुरी बात नहीं है। किन्तु राष्ट्रभाषा हिन्दी बोलने एवं लिखने में हमें गर्व का अनुभव करना चाहिए। बहुत से ऐसे लोग हैं जो अंग्रेजी के विद्वान होते हुए भी घर अथवा बाहर हिन्दी का ही प्रयोग लिखने व बोलने में करते है। वर्तमान में, विदेशों में जाने के बाद या यहाँ भी जो विदेशी कम्पनियाँ हैं, वे सभी कार्य अंग्रेजी में ही करती हैं, सेवा में भी अंग्रेजी जानने वालों को ही रखा जाता है। अतः अंग्रेजी का सीखना व जानना बुरा नहीं हैं। किन्तु प्रत्येक नागिरक को बोलने एवं लिखने में अपनी राष्ट्रभाषा का ही प्रयोग करना चाहिए।
मेरी संसद सदस्यों से भी करबद्ध प्रार्थना है कि वे भी हिन्दी या प्रान्तीय भाषाओं में ही बोलें। इससे देशवासी भी दूरदर्शन के माध्यम से प्रान्तीय भाषाओं का आनन्द ले सकेंगे। दूरदर्शन व आकाशवाणी से यह प्रार्थना है कि वे भी अपने प्रासारणा में हिन्दी व प्रान्तीय भाषा का ध्यान अवश्य रखें।
विभिन्न वस्तुओं के निर्माताओं पर विवरणा ऊपर हिन्दी में, नीचे प्रान्तीय भाषा में तथा उसके नीचे अंग्रेजी भाषा में लिखना चाहिए ताकि बहुसंखयक लोग उसे पढ़कर उपयोग में ला सकें। विदेशी कम्पिनयों से भी प्रार्थना है कि वे भारत की राष्ट्रभाषा का सम्मान करते हुए हिन्दी भाषा का ही लिखने एवं बोलने में प्रयोग करें।
जो विद्यालय अंग्रेजी माध्यम हैं, वे भी राष्ट्रभाषा हिन्दी पर विशेष ध्यान दें तथा अंकों को भी देवनागरी लिपि के अनुसार पढ़ायें । उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों से भी प्रार्थना है कि वे हिन्दी भाषा में ही बोलें एवं इसी में गर्व का अनुभाव करें।
डॉ० कर्ण सिंह से प्रार्थना है कि विश्व हिन्दी सम्मेलन करना उत्तम है। किन्तु अपने देश में जहाँ की राष्ट्रभाषा हिन्दी है, वहाँ कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका का कार्य हिन्दी में हो सकें, ऐसा प्रयास करें।
आम जनता से भी प्रार्थना है कि अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी बोलने एवं लिखने में स्वाभिमान का अनुभव करें तथा हिन्दी को राष्ट्रभाषा होने का गौरव प्रदान करें।
आज विश्व भाषा के रूप में अंग्रेजी का प्रचलन बढ़ रहा है। अंग्रेजी पढ़ना, उसका ग्याता होना बुरी बात नहीं है। किन्तु राष्ट्रभाषा हिन्दी बोलने एवं लिखने में हमें गर्व का अनुभव करना चाहिए। बहुत से ऐसे लोग हैं जो अंग्रेजी के विद्वान होते हुए भी घर अथवा बाहर हिन्दी का ही प्रयोग लिखने व बोलने में करते है। वर्तमान में, विदेशों में जाने के बाद या यहाँ भी जो विदेशी कम्पनियाँ हैं, वे सभी कार्य अंग्रेजी में ही करती हैं, सेवा में भी अंग्रेजी जानने वालों को ही रखा जाता है। अतः अंग्रेजी का सीखना व जानना बुरा नहीं हैं। किन्तु प्रत्येक नागिरक को बोलने एवं लिखने में अपनी राष्ट्रभाषा का ही प्रयोग करना चाहिए।
मेरी संसद सदस्यों से भी करबद्ध प्रार्थना है कि वे भी हिन्दी या प्रान्तीय भाषाओं में ही बोलें। इससे देशवासी भी दूरदर्शन के माध्यम से प्रान्तीय भाषाओं का आनन्द ले सकेंगे। दूरदर्शन व आकाशवाणी से यह प्रार्थना है कि वे भी अपने प्रासारणा में हिन्दी व प्रान्तीय भाषा का ध्यान अवश्य रखें।
विभिन्न वस्तुओं के निर्माताओं पर विवरणा ऊपर हिन्दी में, नीचे प्रान्तीय भाषा में तथा उसके नीचे अंग्रेजी भाषा में लिखना चाहिए ताकि बहुसंखयक लोग उसे पढ़कर उपयोग में ला सकें। विदेशी कम्पिनयों से भी प्रार्थना है कि वे भारत की राष्ट्रभाषा का सम्मान करते हुए हिन्दी भाषा का ही लिखने एवं बोलने में प्रयोग करें।
जो विद्यालय अंग्रेजी माध्यम हैं, वे भी राष्ट्रभाषा हिन्दी पर विशेष ध्यान दें तथा अंकों को भी देवनागरी लिपि के अनुसार पढ़ायें । उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों से भी प्रार्थना है कि वे हिन्दी भाषा में ही बोलें एवं इसी में गर्व का अनुभाव करें।
डॉ० कर्ण सिंह से प्रार्थना है कि विश्व हिन्दी सम्मेलन करना उत्तम है। किन्तु अपने देश में जहाँ की राष्ट्रभाषा हिन्दी है, वहाँ कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका का कार्य हिन्दी में हो सकें, ऐसा प्रयास करें।
आम जनता से भी प्रार्थना है कि अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी बोलने एवं लिखने में स्वाभिमान का अनुभव करें तथा हिन्दी को राष्ट्रभाषा होने का गौरव प्रदान करें।
मोहन राय
३४, गोविन्द नगर शाहगंज, आगरा
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