11.1.13

अम्मा

अम्मा
जब मेघ बरसते रह-रह कर
छाता बन जाती थी अम्मा,

बिजली कड़की काँप गया मैं,
गले लगाती थी अम्मा।

रात पूस की थर-थर जाड़ा
बनी रजाई थी अम्मा।

खुद बैठे चूल्हे के आगे
हमें सुलाती थी अम्मा।

जेठ मास में हाय-हाय गर्मी
पंख डुलाती थी अम्मा,

सत्तू, खीरा ठंडे होते
हमें खिलाती थी अम्मा।

पढ़ लिखकर मैं बनूं कलक्टर,
बनी मास्टरनी अम्मा,

बुद्धिमान मैं ही बन जाऊं
घी पिलाती थी अम्मा।

गाँव दुखी मेरी हरकत से,
बनी संरक्षक थी अम्मा,

कोई आए करे शिकायत,
उसे सुनाती थी अम्मा।

मैं हूं काला और कलूटा
राजा कहती थी अम्मा

मैं गोरा-गोरा हो जाऊँ
हमाम लगाती थी अम्मा।

डॉ. भानु प्रताप सिंहआगरा
bhanuagra@gmail.com

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