23.7.08

आखिर कब सुधरेंगे हम

यूं तो एमबीए करना अपने आप में एक रोमांच है,लेकिन हिन्दी माध्यम से एमबीए करना गौरवपूर्ण रोमांच है। इसे मैंने स्वयं अनुभव किया है। एमबीए की प्रथम सत्र की परीक्षा हिन्दी माध्यम से दी। अनुत्तीर्ण घोषित कर दिया गया। हिन्दी माध्यम से लिखे उत्तर शिक्षकों की समझ से परे थे। बाद में आंग्लभाषा में परीक्षा दी और फिर उत्तीर्ण होता चला गया। अच्छे अंक मिले। हां, साक्षात्कार हिन्दी माध्यम से ही दिया।एमबीए करने के बाद विचार आया कि क्यों न विद्या वाचस्पति (पीएचडी) की उपाधि ली जाए। डॉ। भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के आवासीय संस्थान सेठ पदमचंद जैन प्रबंध संस्थान के तत्कालीन निदेशक डॉ। एमआर बंसल और वर्तमान प्रभारी निदेशक डॉ। बृजेश रावत के मार्गदर्शन में काम शुरू किया गया। विषय रखा- उत्तर प्रदेश प्रशासन में मानव संसाधन की उन्नत प्रवृत्तियों का अध्ययन- आगरा मंडल के संदर्भ में। सिनोप्सिस हिन्दी भाषा में तैयार की गई। उस समय लोग हँस रहे थे कि प्रबंधन विषय में हिन्दी माध्यम से पीएचडी हो सकती है। डॉ. बंसल ने जब शोध डिग्री कमेटी के समक्ष हिन्दी में लिखी गई सिनोप्सिस रखी तो सबको कूड़ा ही नजर आई। कमेटी ने एक स्वर में कहा कि प्रबंधन में हिन्दी नहीं चल सकती। डॉ. बंसल ने कमेटी को बहुत सी बातें समझाईं। दबाव का दांव भी खेला। अंतिम तीर चलाया कि शोधार्थी पत्रकार है। इसके बाद कमेटी ने अनमने मन से सिनोप्सिस स्वीकृत कर दी।इसके बाद शुरू हुआ काम। प्रश्नावली हिन्दी में कैसै तैयार हो। तमाम तरह के विचार आए। खैर, जैसे-तैसे प्रश्नावली बनी तो आला अधिकारियों को समझने की समस्या। लिखी गई बात को मतलब अंग्रेजी में समझाना पड़ता था। कुछ ने खुशी से तो अधिकांश ने नाखुशी से प्रश्नावली भरी। शोध का विषय स्पष्ट करने में खासी मशक्कत करनी पड़ती थी।उस समय खुशी दोगुनी हो गई जब डॉ. एनएल शर्मा (बरेली) और एमएल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर में प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष प्रो. डीएस चुंडावत ने शोधग्रंथ की विस्तृत रिपोर्ट हिन्दी माध्यम से प्रस्तुत की। प्रो. चुंडावत ने आगरा आकर विश्वविद्यालय में मौखिक परीक्षा ली। हिन्दी में ही प्रश्नोत्तर हुए। इस तरह चार साल के प्रयास के बाद पीएचडी की उपाधि मिल सकी।प्रसन्नता है कि हिन्दी के लिए चल रहे संघर्ष में मैं भी एक छोटी सी आहुति दे सका। लेकिन यह कितना विरोधाभास है कि देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी होते हुए भी हिन्दी में काम करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। आखिर कब सुधरेंगे हम।

8 comments:

Anonymous said...

हम सुधरने की कौशिश तॊ कर रहे है परन्तु क्या करें अंग्रेजी पीछा नहीं छॊड़ रही है। अंग्रेजी जानने बाले हिन्दी भाषियॊं कॊ टके सेर भी नहीं समझते। लेकिन वे भी इसके दॊषी नहीं है इसका दॊष तॊ हमारे ही ऊपर है। कि हम अपने कॊ कमजॊर समझते हैं। जबकि हमें गर्व करना चाहिए कि हम हिन्दुस्तानी की संस्क्रति बनाने के लिए हिन्दी भाषा के हथियार से लड़ रहे है।
आपका केदार नाथ यादव

Anonymous said...

हम सुधरने की कौशिश तॊ कर रहे है परन्तु क्या करें अंग्रेजी पीछा नहीं छॊड़ रही है। अंग्रेजी जानने बाले हिन्दी भाषियॊं कॊ टके सेर भी नहीं समझते। लेकिन वे भी इसके दॊषी नहीं है इसका दॊष तॊ हमारे ही ऊपर है। कि हम अपने कॊ कमजॊर समझते हैं। जबकि हमें गर्व करना चाहिए कि हम हिन्दुस्तानी की संस्क्रति बनाने के लिए हिन्दी भाषा के हथियार से लड़ रहे है।
आपका केदार नाथ यादव

AR said...

kya hua sir nagar nigam ka

Unknown said...

bhaunu je,apka pryaas saraahniya hai..

Anonymous said...

Excellent, You have done an amazing work. from; Anurag Arora.

Astrologer Sidharth said...

डॉक्‍टर साहब
नमस्‍कार
हर व्‍यक्ति जो हिन्‍दी के लिए कुछ विशेष करता है वह बाकी लोगों के लिए रास्‍ते खोल देता है। सातो समुद्रों में हिन्‍दी की खुशबू फैलती जा रही है। अब तो पता चल रहा है कि वेबसाइट और ईमेल एड्रेस भी हिन्‍दी में लिखे जा सकने की संभावना है। माइक्रोसॉफ्ट लिप सेटअप के जरिए हिन्‍दी भाषियों को कृतार्थ कर ही चुका है। हिन्‍दी का सफर ऐसे ही बढ़ता रहा तो हो सकता है कि संस्‍कृत की इस पुत्री का डंका एक दिन पूरी दुनिया में बजने लगे। अंग्रेजी की बजाय देवनागरी और हिन्‍दी भाषा संप्रेषण के मुख्‍य औजार बन जाएं ।
शेष शुभम
आपके प्रयास और सफलता पर एक बार और आपको बधाई
सिद्धार्थ जोशी
पत्रकार
राजस्‍थान पत्रिका
बीकानेर
राजस्‍थान


अंत में एक बात और कमेंट में से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें इससे कमेंट करने में आसानी रहेगी। वैसे भी हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग में अभी तक स्‍पैम की समस्‍या नहीं है। यह सुझाव मात्र है इसे अन्‍यथा न लें।

Anonymous said...

श्री सिद्धार्थ जोशी जी,
आपके सुझाव के अनुसार, वर्ड सत्यापन को हटा दिया गया है। आशा है आपको पसंद आएगा। आपके सुझाव के िलए हृदय से आभारी हूं।

सादर

भानु प्रताप िसंह

अजय मूड़ौतिया said...

वर्तमान परिवेश में आने वाली पीढी के लिए आपके प्रयास दिशा निर्देशक का कार्य करेंगे.. लेकिन आगरा शहर को आपकी कमी सालती रहेगी.. अजय मुडोतिया