25.7.14

चिड़ियाघर, शेर, चायवाला और चाय



डॉ. भानु प्रताप सिंह

आज इस लेख का श्रीगणेश छोटी सी कहानी से करते हैं। कहानी कुछ इस प्रकार है- 
एक चिड़ियाघर से दो शेर भाग गए। एक शेर जंगल से पकड़ा गया था, इसलिए वह जंगल की ओर भागा। दूसरा शेर चिड़ियाघर में पैदा हुआ था, इसलिए शहरी प्रवृत्ति का था और वह शहर की ओर भागा। तीन दिन बाद जंगल की ओर भागा शेर पकड़ा गया। उसे फिर से चिड़ियाघर में बन्द कर दिया गया। कई महीने बीत गए, शहरी शेर का कोई पता नहीं चल पा रहा था। छह महीने बाद शहरी शेर पकड़ा गया और उसे फिर से चिड़ियाघर में बन्द कर दिया गया।
जंगली शेर ने जब शहरी शेर को अपने साथ देखा तो बड़ा आश्चर्य हुआ। 
उसने पूछा, खुदा के लिए मुझे बताओ कि तुम छह माह तक शहरी लोगों के बीच किस तरह रह पाए?
शहरी शेर ने कहा- कुछ नहीं यार, मैं सरकारी कार्यालय में गया और वहां धूल भरी फाइलों के ढेर के पीछे छिप गया। फाइलों की ओर कोई नहीं आता था।
जंगली शेर ने पूछा- लेकिन तुमने वहां पेट कैसे भरा।
शहरी शेर- अरे, वहां सरकारी कर्मचारियों की अबाध आपूर्ति थी। मैं किसी एक को खाता, सरकार पांच और भर्ती कर लेती। चूंकि वहां कोई काम नहीं करता है, इसलिए मेरे खाने के बाद गायब हुए व्यक्ति की चिन्ता किसी को नहीं थी।
जंगली शेर- वाह, फिर तुम पकड़े कैसे गए?
शहरी शेर: गलती कर गया यार। एक दिन मैंने चाय वाले को खा लिया। पूरे कार्यालय में काम बन्द हो गया। उन्होंने चाय वाले को ढूंढने के लिए सघन अभियान चला दिया और मैं पकड़ा गया।
चायवाला आम आदमी, चाय यानी रिश्वत
यह कहानी हमें बताती है कि हमारे सरकारी कार्यालयों में किस तरह से ‘मक्कारी’ होती है। सरकारी कार्यालयों में काम के अलावा सबकुछ होता है। सरकारी कार्यालयों में अपना काम कराना ‘लोहे के चने चबाने’ से कम नहीं है। इस कहानी  में चाय वाला सामान्य नागरिक है। चाय को रिश्वत के प्रतीक बतौर लिया गया है। चिड़ियाघर सरकारी कार्यालय की तरह है। चाय पिलाए बिना यानी रिश्वत का पहिया लगाए बिना फाइलें आगे बढ़ती नहीं हैं। सरकार ने कितने ही प्रयास कर लिए हैं, लेकिन सरकारी कामकाज का ढर्रा नहीं बदला है। सरकारी कर्मचारी का काम साधारण से काम में भी अड़ंगा लगाना है। जब  रिश्वत रूपी चाय मिलनी बन्द हो जाती है, तब वह शिकार की तलाश में निकलता है। कहानी में शेर को अधिकारी मान लीजिए। वह फाइलों के पीछे आंख-कान बन्द करके बैठा रहता है। कोई चिन्ता नहीं है। अधिकारी को अपना ‘हिस्सा’ मिलता रहता है और वह मौज करता रहता है। 
चिड़ियाघर के कर्मी यानी सीबीआई
चिड़ियाघर के कर्मचारी केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की तरह ऐसे अफसरों को पकड़ लेते हैं, तब जाकर बात खुलती है। मध्याह्न भोजन योजना (मिड-डे-मील) में यही तो हुआ है। सीबीआई जांच कर रही है, तो मैनपुरी के पूर्व जिलाधिकारी सच्चिदानंद दुबे और अलीगढ़ विकास प्राधिकरण (एडीए) के उपाध्यक्ष जेबी सिंह को गिरफ्तार किया गया है। ये अधिकारी चिड़ियाघर से भागे शेर की तरह फाइलों के पीछे आंख बंद करके बैठे रहे और निचले स्तर पर तैनात कर्मचारी छह करोड़ रुपये का घोटाला कर गए। ये अधिकारी कुछ भी सफाई  दें, लेकिन अगर ये अधिकारी आंख-कान खुले रखते तो छात्रों के निवाले को कोई और हजम कर पाता क्या? उनके अधीनस्थ कर्मचारी रिश्वत रूपी चाय पीते रहे और अपनी जेब भरते रहे। कितनी अजीब बात है कि जिन पर घोटाला रोकने की जिम्मेदारी है, वे ही इसमें लिप्त मिले हैं। इस तरह के घोटाले तभी खुलते हैं, जब जांच सीबीआई को मिलती है। मुझे लगता है कि इस तरह के मिड-डे-मील घोटाले हर जिले में हैं।
सरकारी योजनाएं
केन्द्र और प्रदेश सरकार की योजनाएं भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गई हैं। कभी-कभी तो लगता है कि ये योजनाएं सरकारी कर्मचारियों और इन्हें चलाने वाली संस्थाओं के लिए ही बनाई गयी हैं। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई बेरोजगारी भत्ता योजना को ही लें, इसमें तमाम अपात्रों को भत्ता दिया गया। कुछ लोगों से बाद में वसूली की गई, लेकिन अन्य हजारों लोग तो ‘माल’ खा ही गए। इसी तरह के आरोप लैपटॉप वितरण योजना में भी लगते रहे हैं। सरकार की दोनों योजनाएं लाजवाब हैं, लेकिन सरकारी कर्मचारी इनका बैंड बजाने से नहीं चूके। सरकार ने दोनों योजनाएं बन्द कर दी हैं। इसका जितना दुख लाभार्थियों को नहीं होगा, उससे अधिक दुख सरकारी कर्मचारियों को है। केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा (महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) भी भ्रष्टाचार की शिकार है। कुछ राज्यों में हुए घोटालों की जांच सीबीआई कर रही है। इस योजना के तहत हर जिले में भ्रष्टाचार हो रहा है। हमारे माननीय ‘प्रधान जी’ भी भ्रष्टाचार के गटर में गोते लगा रहे हैं। इन्हीं प्रधानजी की जिम्मेदारी है मनरेगा को चलाने की। यही घोटाला करेंगे, तो रोकेगा कौन? 
और अन्त में...
महंगाई पर दो पंक्तियों का व्यंग्य देखिए-
डॉलर की क्या औकात है
हमारे तो टमाटर भी उससे महंगे हैं...
(लेखक ‘द सी एक्सप्रेस’ के सम्पादक हैं)

20.7.14

हिन्दी

हिन्दुस्तान में हिन्दी दिवस, यह हिन्दी का अपमान है,
भारत हिन्दी, हिन्दी भारत, हिन्दी भारत का प्राण है।
हम भारत के प्राण बचाएं, रग-रग में बस जाए हिन्दी..


कई देशों से सस्ता है भारत में पेट्रोल

हमारे देश में चर्चा है तो महंगाई की। चुनाव से पहले •ाी और चुनाव के बाद •ाी। इसमें •ाी पेट्रोल-डीजल की। पेट्रोलियम पदार्थो में प्रति माह होने वाली वृद्धि को मोदी सरकार •ाी रोक नहीं पाई है। अपने देश में पेट्रोल के दाम 80 रुपये प्रतिलीटर को पार कर गए हैं। कार, स्कूटर और बाइक का ईंधन तो डीजल-पेट्रोल ही है। जब इनके दाम बढ़ते हैं तो हंगामा स्वा•ााविक है। हर घर में बाइक-स्कूटर है। घरों में दो बाइकें होना •ाी आम बात है। कारों की संख्या •ाी बढ़ती जा रही है। •ाले ही हम दिन•ार में 10-20 रुपये का पान मसाला खाकर थूक दें, मल्टीप्लेक्स में 200 रुपये की टिकट में फिल्म देख लें, लेकिन पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्यवृद्धि सहन नहीं होती है। पेट्रोल के बारे में इंटरनेट खंगालते समय पता चला कि दुनिया के अनेक देशों की तुलना में •ाारत में पेट्रोल सस्ता है।
अलादीन का चिराग मिल जाए
एक-दो रुपये की वृद्धि का आम उप•ोक्ता पर कोई खास असर नहीं होता है। इसकी आड़ में टेम्पो वाले, टैक्सी वाले, ट्रक वाले मनमाना किराया बढ़ा देते हैं। ट्रक का किराया बढ़ता है, तो अन्य वस्तुओं के दाम स्वा•ााविक रूप से बढ़ जाते हैं। सरकार का पेट्रोलियम पदार्थों की वृद्धि पर तो नियंत्रण है, लेकिन •ााड़ा या किराया बढ़ाने वालों पर कोई अंकुश नहीं है। प्रतिलीटर कुछ पैसे बढ़ते हैं और किराया रुपये में बढ़ा दिया जाता है। ऐसे में गुस्सा स्वा•ााविक है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि कोई •ाी सरकार नहीं चाहेगी कि महंगाई बढ़े। हां, महंगाई रोकने में नाकाम होना •ाी महंगाई को बढ़ावा देना है। पहले मैच में ही तिहरा शतक लगाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से आम जनता को बहुत अधिक आशाएं हैं। जनता को तो लगता है कि वे कहीं से जादू की छड़ी ले आएं, उसे घुमाएं और समस्या हल। जनता को यह •ाी लगता है कि नरेन्द्र मोदी के हाथ अलादीन का चिराग लग जाए। उसे रगड़ें, जिन्न बाहर निकले और महंगाई का खात्मा कर दे।
इन देशों में •ाारत से महंगा पेट्रोल
नार्वे में 156 रुपये, नीदरलैंड 150, इटली 146, ग्रीस 140, डेनमार्क 139, हांगकांग 131, फिनलैंड 130, ब्रिटेन 129, जर्मनी 123, फ्रांस 123,  न्यूजीलैंड 114, हंगरी 107, चेक गणराज्य 106 और पोलैंड में 104 रुपये प्रतिलीटर पेट्रोल है। नार्वे, ब्रिटेन, इटली, हांगकांग, न्यूजीलैंड आदि देशों की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ माना जाता है। इसके बाद •ाी वहां पेट्रोल महंगा है।
पड़ोसी देशों की स्थिति
•ाारत के पड़ोसी देश नेपाल में 82 रुपये, श्रीलंका में 77.25, पाकिस्तान में 64.79,  बांग्लादेश में 64, •ाूटान में 55.54 और चीन में 78.91 रुपये प्रतिलीटर पेट्रोल बिकता है। नेपाल को छोड़कर अन्य देशों में •ाारत से पेट्रोल सस्ता है। चीन को छोड़ दें, तो अन्य देशों की आर्थिक स्थिति •ाारत के मुकाबले अच्छी नहीं है। फिर •ाी ये पड़ोसी देश पेट्रोल के मूल्य को काबू में रखे हुए हैं। हमारे देश में पेट्रोल के दाम बढ़ते जा रहे हैं।
यहां है सस्ता
कई देशों में •ाारत से बहुत सस्ता पेट्रोल है। उदाहरण के लिए अमेरिका में 57.42 रुपये, मलेशिया 35.18, नाइजीरिया 34.51, दुबई 27.72, ओमान 18.43, इंडोनेशिया 15.68, बहरीन 15.65, कुवैत 14.75 और सऊदी अरब में 9.48 रुपये प्रति लीटर की दर से पेट्रोल बिकता है।
देश के शहरों में पेट्रोल के दाम
अहमदाबाद में 75.36 रुपये, बंगलुरू 78.38, •ोपाल 76.15, •ाुवनेश्वर 70.72, चेन्नई 74,71, देहरादून 75, गोवा 59.33, गुड़गांव 74.85, जयपुर 75 रुपये, जम्मू एवं कश्मीर 74.59, लखनऊ 78.82, मुंबई 80.11, नई दिल्ली 71.51, रायपुर (छत्तीसगढ़) 73.48, शिमला 75.20, हैदराबाद में 78 रुपये प्रति लीटर है।  कुल मिलाकर •ाारत में पेट्रोल मूल्य करीब 77 रुपये के आसपास हैं। मुंबई से महंगा पेट्रोल आगरा में है।
पेट्रोल और वॉट्सऐप
इस लेख को मिलने की प्रेरणा वॉट्सऐप पर आए एक संदेश के बाद मिली। इसके अनुसार, •ाारत औसतन 2.5 करोड़ टन कच्चा तेल इराक से आयात करता है। यानि कुल आयात का 20 फीसद। इस साल 1.87 करोड़ टन तेल का आयात होना है। इसका करीब 50 फीसद •ाारत आ चुका है। बाकी बचे हिस्से की बड़ी खेप बसरा से आने वाली है। बसरा शहर दक्षिणी इराक में है और आतंकवादियों का कब्जा उत्तरी इराक में है। बसरा से आपूर्ति प्र•ाावित नहीं हुई है। इसके अलावा तेल मंगाने का करार सालाना होता है, यानि रोज की घटती-बढ़ती कीमत का इस पर कोई असर नहीं है। इस संदेश में बताया गया था कि पेट्रोल के रेट पाकिस्तान में 26 रुपये, बांग्लादेश में 22, क्यूबा 19, इटली 14, नेपाल 34, बर्मा 30, अफगानिस्तान 36, श्रीलंका 34 और •ाारत में 82 रुपये प्रतिलीटर है। मूल लागत प्रतिलीटर 16.50 रुपये है।  केन्द्रीय कर 11.80 फीसद, एक्साइज ड्यूटी 9.75 फीसद, वैट सेस चार फीसद, राज्यकर  और फीसद है। कुल मिलाकर 50.05 रुपये कर प्रतिलीटर। ऐसे में पेट्रोल 82 रुपये कैसे बेचा जा रहा है?
और अन्त में...
तेरा प्यार •ाी हजार के नोट जैसा है, डर लगता है कहीं नकली तो नहीं..।
(लेखक ‘द सी एक्सप्रेस’ के सम्पादक हैं)

 www.theseaexpress.com 16-6-2014 पेज-1
 www.theseaexpress.com 7-6-2014 पेज-4

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 आगरा से प्रकाशित हिन्दी दैनिक द सी एक्सप्रेस में 14-6-2014 को पेज-4 पर आलेख। प्रत्येक शनिवार को आलेख प्रकाशित होता है।

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 www.theseaexpress.com 25-4-2014 पेज-4

www.theseaexpress.com  का पेज-4, तारीख 19-7-2014