25.7.08

कुछ तो सीखें इनसे हम

शोध प्रबंध हिन्दी में ही क्यों
(उत्तर प्रदेश प्रशासन में मानव संसाधन की उन्नत प्रवत्तियों का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन- आगरा मंडल के संदर्भ में विषयक शोध प्रबंध का संपादित अंश)
आंग्लभाषा के बिना प्रबंधन विषय की कल्पना नहीं की जा सकती। हमें पढ़ाय़ा जाता है कि अच्छी नौकरी है तो अंग्रेजी बोलना आना चाहिए। यह भी कि जो अंग्रेजी नहीं जानते, वे अच्छे प्रबंधक नहीं बन सकते। प्रबंधक क्षेत्र में प्रगति के बिना संभव नहीं है। बात सटीक नजर आती है क्योंकि अंग्रेजी जानने वाले ही प्रबंधन के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थानों पर हैं।
एमबीए करने के बाद जब शोध का विचार आया तो अंग्रेजी और हिन्दी के बीच द्वंद्व शुरू हो गया। मेरे सामने चार उदाहरण थे- पहला उदाहरण आगरा के डॉ. मुनीश्वर गुप्ता (निदेशक कामायनी अस्पताल) का है, जिन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में एमडी की उपाधि हिन्दी माध्यम से प्रस्तुत कर अनोखा रिकार्ड बनाया। दूसरा उदाहरण पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का है,जिनकी हिन्दी के प्रति निष्ठा अतुलनीय है। कोई कुछ भी कहे, श्री मुलायम सिंह याव की मातृभाषा के प्रति निष्ठा कम नहीं हो रही है, अपितु बढ़ती जा रही है। तीसरा उदाहरण पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का है। श्री वाजपेयी ने विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी में भाषण करके देश का मान बढ़ाया। चौथा उदाहरण आगरा के श्री चंद्रशेखर उपाध्याय (ओएसडी, मुख्यमंत्री, उत्तरांचल सरकार) का है,जिन्होंने हिन्दी माध्यम से एलएलएम की उपाधि ली। तमाम अवरोधों के बाद भी हिन्दी का गौरव बढ़ाया।
मैंने किसी रिकार्ड के लिए नहीं बिल्क अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानते हुए शोध का माध्यम हिन्दी चुना। इसके पीछे कुछ तथ्य भी हैं। भारत में 34 करोड़ 65 लाख 13 हजार लोगों की मातृभाषा हिन्दी है। हिन्दी को दूसरी भाषा के रूप में अपनाने वालों की संख्या जोड़ दें तो आधा देश हिन्दी बोल रहा है। बांग्लादेश में 3.46 लाख, अमेरिका में 26253, म़ॉरीशस में 685170, दक्षिण अफ्रीका में 890292, यमन में 232760, युगांडा में 1.47 लाख, सिंगापुर में पांच हजार, न्यूजीलैंड में 11200, जर्मनी में 24500 लोग हिन्दी भाषी हैं। भारत से बाहर अन्य देशों में 18.20 करोड़ लोग हिन्दी को दूसरी भाषा के रूप में अपनाए हुए हैं। केन्या, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन में भी हिन्दी है। हिन्दी भारत की ही नहीं,फिजी की भी राजकाज की भाषा है। फिजी में हिन्दी का नाम हिन्दुस्तानी है। अरुणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह, चंडीगढ़, दिल्ली की राजभाषा हिन्दी है। जम्मू एवं कश्मीर में हिन्दी बोली जाती है, लिखी जाती है, पढ़ी जाती है, लेकिन वहां की राजभाभाषा नहीं है। जम्मू एवं कश्मीर की राजभाषा उर्दू है, जो हिन्दी का ही एक रूप है।यूं तो अपने देश मे 800 भाषाएं और 2000 बोलियां तथा 23 राजकाज की भाषाएं हैं, लेकिन हिन्दी की बात ही निराली है। खड़ी बोली, ब्रज भाषा, हरियाणवी,बुंदेली, कन्नौजी, अवधी,अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी, मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती, मालवी, पहाड़ी, भोजपुरी, मैथिली, मगही या मगधी हिन्दी के विभिन्न रूप हैं।
यह हिन्दी का ही जादू है कि 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने हिन्दी सीखी। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने हिन्दी सीखकर सबको संदेश दिया कि हिन्दी के बिना काम नहीं चल सकता। भारत में जन्म लेकर अंग्रेजी बोलने वालों को श्रीमती सोनिया गांधी से कुछ सीखना चाहिए। संसद में अंग्रेजी बोलने वाले सांसद अपने चुनाव क्षेत्र में हिन्दी या अपनी मातृभाषा में ही वोट मांगते हैं।
आंकड़ों और अनुभव से स्पष्ट है कि हिन्दी को समझने और बोलने वालों की संख्या किसी से कम नहीं है। इसलिए किसी भी कार्य का प्रबंधन करने में हिन्दी की महत्वपूर्ण भूमिका है। बहुराष्ट्रीय कंपिनयां अंतःप्रकोष्ठ में भले ही अंग्रेजी चलाएं, लेकिन हिन्दी माध्यम उनके उत्पादों के प्रचार-प्रसार की अनिवार्यता है, जैसे ठंडा मतलब कोकाकोला, सिर उठा के पियो...। हिन्दी की लोकप्रियता का एक प्रमाण और है कि सिर्फ अंग्रेजी में चलने वाले टीवी चैनल जैसे डिस्कवरी और नेशनल जियोग्राफिक पर हिन्दी में कार्यक्रम आ रहे हैं। अंग्रेजी फिल्में दिखाने वाले चैनलों पर विज्ञापन हिन्दी में भी आ रहे हैं।
मैं गौरवान्वित हूं कि देश की भाषा हिन्दी में शोध प्रबंध लिखने का अवसर मिला। हिन्दी में शोध प्रबंध लिखने की प्रेरणा देने के लिए अपने सहयोगियों का कृतज्ञ हूं।
-भानु प्रताप सिंह

23.7.08

आखिर कब सुधरेंगे हम

यूं तो एमबीए करना अपने आप में एक रोमांच है,लेकिन हिन्दी माध्यम से एमबीए करना गौरवपूर्ण रोमांच है। इसे मैंने स्वयं अनुभव किया है। एमबीए की प्रथम सत्र की परीक्षा हिन्दी माध्यम से दी। अनुत्तीर्ण घोषित कर दिया गया। हिन्दी माध्यम से लिखे उत्तर शिक्षकों की समझ से परे थे। बाद में आंग्लभाषा में परीक्षा दी और फिर उत्तीर्ण होता चला गया। अच्छे अंक मिले। हां, साक्षात्कार हिन्दी माध्यम से ही दिया।एमबीए करने के बाद विचार आया कि क्यों न विद्या वाचस्पति (पीएचडी) की उपाधि ली जाए। डॉ। भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के आवासीय संस्थान सेठ पदमचंद जैन प्रबंध संस्थान के तत्कालीन निदेशक डॉ। एमआर बंसल और वर्तमान प्रभारी निदेशक डॉ। बृजेश रावत के मार्गदर्शन में काम शुरू किया गया। विषय रखा- उत्तर प्रदेश प्रशासन में मानव संसाधन की उन्नत प्रवृत्तियों का अध्ययन- आगरा मंडल के संदर्भ में। सिनोप्सिस हिन्दी भाषा में तैयार की गई। उस समय लोग हँस रहे थे कि प्रबंधन विषय में हिन्दी माध्यम से पीएचडी हो सकती है। डॉ. बंसल ने जब शोध डिग्री कमेटी के समक्ष हिन्दी में लिखी गई सिनोप्सिस रखी तो सबको कूड़ा ही नजर आई। कमेटी ने एक स्वर में कहा कि प्रबंधन में हिन्दी नहीं चल सकती। डॉ. बंसल ने कमेटी को बहुत सी बातें समझाईं। दबाव का दांव भी खेला। अंतिम तीर चलाया कि शोधार्थी पत्रकार है। इसके बाद कमेटी ने अनमने मन से सिनोप्सिस स्वीकृत कर दी।इसके बाद शुरू हुआ काम। प्रश्नावली हिन्दी में कैसै तैयार हो। तमाम तरह के विचार आए। खैर, जैसे-तैसे प्रश्नावली बनी तो आला अधिकारियों को समझने की समस्या। लिखी गई बात को मतलब अंग्रेजी में समझाना पड़ता था। कुछ ने खुशी से तो अधिकांश ने नाखुशी से प्रश्नावली भरी। शोध का विषय स्पष्ट करने में खासी मशक्कत करनी पड़ती थी।उस समय खुशी दोगुनी हो गई जब डॉ. एनएल शर्मा (बरेली) और एमएल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर में प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष प्रो. डीएस चुंडावत ने शोधग्रंथ की विस्तृत रिपोर्ट हिन्दी माध्यम से प्रस्तुत की। प्रो. चुंडावत ने आगरा आकर विश्वविद्यालय में मौखिक परीक्षा ली। हिन्दी में ही प्रश्नोत्तर हुए। इस तरह चार साल के प्रयास के बाद पीएचडी की उपाधि मिल सकी।प्रसन्नता है कि हिन्दी के लिए चल रहे संघर्ष में मैं भी एक छोटी सी आहुति दे सका। लेकिन यह कितना विरोधाभास है कि देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी होते हुए भी हिन्दी में काम करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। आखिर कब सुधरेंगे हम।